Ganeshwar Dham History and singnificance in Hindi : राजस्थान के सीकर जिले में नीमकाथाना से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्राचीन गणेश्वर धाम। यह धाम तीन कारणों से दर्शनीय है। पहला प्राकृतिक झरने के लिए, दूसरा यहाँ के धार्मिक महत्त्व के लिए और तीसरा ताम्रयुगीन संस्कृति के लिए। यहाँ का प्राकृतिक परिवेश श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों को बहुत लुभाता है।
ऋषि गालव की तपस्यास्थली (Rishi Galav)
माना जाता है कि किसी समय गालव ऋषि इसी स्थान पर तपस्या करते थे। इस कारण झरने को गालव गंगा तथा झरने का पानी एकत्र होने से बनी झील को गालव गंगा झील कहा जाता है। इस झील के पास थानेश्वर महाराज का मंदिर तथा आज से लगभग 500 वर्ष पहले हुए बाण रावरासल जी का मंदिर भी स्थित है। माना जाता है कि गणेश्वर कि यह आधुनिक मानव बस्ती बाबा रावरासल ने ही बसाई थी। उन्होंने ही इस झील में एक गोमुख लगवाया था। गालव गंगा झील के नीचे ही ठंडे पानी की एक धारा बहती है।
कुण्ड में स्नान करने से होता है स्वास्थ्यलाभ (Galav Ganga, Ganeshwar) –
यहाँ प्राकृतिक झरने से निरन्तर गर्म पानी बहता रहता है, जिस पर गोमुख लगा है। यहाँ गोमुख से गर्म पानी गिरता है जो एक कुण्ड में एकत्र होता है। iइस कुण्ड को गालव गंगा कहा जाता है। मान्यता है कि इस जल में स्नान करने से शरीर के रोग ठीक तथा मन शुद्ध हो जाता है। दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ आकर इस कुण्ड में स्नान करते हैं तथा तन-मन में स्वास्थ्यलाभ पाते हैं। पुरुषों तथा महिलाओं के लिए अलग-अलग कुण्ड हैं।
ताम्रयुगीन संस्कृति की जननी: गणेश्वर –
इतिहासकार रत्नचंद्र अग्रवाल ने लिखा है कि गणेश्वर की खुदाई 1977 में हुई थी। यहाँ लाल मिट्टी का भाण्ड जिस पर काले रंग से चित्रकारी की गई है, प्राप्त हुआ है। यहाँ लगभग 1000 से ज्यादा ताम्बे के टुकड़े पाए गए थे। खुदाई से तांबे की वस्तुओं में बाणों के सिरे, भाला, मछली पकड़ने के कांटे, चूड़ी और छेनी शामिल हैं।
कांटली नदी के उद्गम पर स्थित गणेश्वर टीले से ताम्रयुगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। रेडियो कार्बन विधि से इस स्थल की तिथि 2800 वर्ष ईस्वी पूर्व (अर्थात आज से लगभग 4800 वर्ष पूर्व) निर्धारित की गई है।
ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में गणेश्वर सबसे पुराना है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि गणेश्वर ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी है। विश्व के प्रसिद्ध खेतड़ी ताम्र भण्डार के मध्य में स्थित होने के कारण इस मान्यता को और अधिक बल मिलता है। यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा कालीबंगा जैसे विकसित सांस्कृतिक केन्द्रों को भी ताम्र एवं ताम्र सामग्री गणेश्वर से ही प्राप्त होती थी।
इस टीले के उत्खनन से कई हजार ताम्र आयुध तथा ताम्र उपकरण प्राप्त हुए हैं। इनमें कुल्हाड़े, तीर, भाले, सुइयां, मछली पकड़ने के कांटे, चूड़ियाँ ताम्बे के अन्य आभूषण प्रमुख हैं। इस सामग्री में 99% ताम्बा है तथा किसी अन्य धातु का मिश्रण नहीं है। अर्थात गणेश्वर सभ्यता के लोगों को धातुओं को मिश्रित करने का ज्ञान नहीं था। यहाँ से लघु पाषाण उपकरण भी मिले हैं। मछली पकड़ने के कांटों से अनुमान होता है कि तब कांटली नदी में खूब पानी बहता था और उसमें पर्याप्त संख्या में जलचर विद्यमान थे। गणेश्वर से प्राप्त मृदा पात्र कपिषवर्णी हैं। इनमे प्याले, तश्तरियां तथा कुण्डियां प्रमुख हैं। इनको विभिन्न प्रकार के रंगों से सजाया गया है। कपिषवर्णी मृद पात्रों पर काले तथा नीले रंग के अलंकृत चित्र चित्रकला के प्रारम्भिक स्वरूप की जानकारी देते हैं। यहाँ से मकानों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। मकान पत्थर के बने हुए हैं तथा ईंटों का प्रयोग नहीं हुआ है। मानव बस्ती को बाढ़ से बचाने के लिए पत्थरों को जोड़कर विशाल बान्धनुमा दीवार भी बनाई गई है। कांटली के किनारे ऐसे लगभग तीन सौ केन्द्रों की खोज हो चुकी है जो गणेश्वर सभ्यता की समकालिक बस्तियां थीं।
गणेश्वर का शिवमंदिर (Shiv Mandir, Ganeshwar) –
इस स्थान का नाम गणों के ईश्वर शिव के नाम पर ही ‘गणेश्वर’ है। यहाँ भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर तथा उसके आस-पास चौबीस अन्य मंदिर, थानेश्वर महाराज का मंदिर तथा संत राव रासलजी का मंदिर दर्शनीय है। शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर प्राकृतिक झरने का पानी एक पाइप के माध्यम से आकर गिरता है। यह जलधारा दिन-रात प्रवाहित होती रहती है। कहा जाता है कि अत्यंत प्राचीन काल में एक नाग झरने से पानी लाकर रोज शिवजी को चढ़ाता था। इस मंदिर की दीवारों पर सुंदर चित्रांकन किया गया है। गर्म पानी के बहते झरने को झीणवन कहते हैं।
सन्दर्भ – राजस्थान : जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन – मोहनलाल गुप्ता।
samjh me aa gaya nice lekh
Nice….I don’t know information about ganeshwar dham before this ……