प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ “चरक संहिता” के प्रणेता महर्षि चरक “आयुर्वेद विशारद” के रूप में प्रसिद्ध है। महर्षि चरक ने अपने ग्रन्थ में भोजन सम्बन्धी विचार भी व्यक्त किये हैं, जिनको अपने जीवन में उतार कर हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
भोजन गर्म होना चाहिए
हमें गर्म भोजन खाना चाहिए। क्योंकि गर्म भोजन खाने में तो अच्छा लगता ही है, यह पेट की जठराग्नि को भी बढ़ाता है। इससे भोजन शीघ्र पच जाता है। यह पेट में विद्यमान वायु को नीचे ले जाता है तथा कफ को नष्ट करता है। अतः गर्म भोजन खाना चाहिए।
भोजन चिकनाई युक्त हो
चिकनाई घी आदि से युक्त भोजन खाना चाहिए। चिकनाई युक्त भोजन शीघ्र पच जाता है। यह वायु को बाहर निकालता है तथा शरीर को पुष्ट करता है। इन्द्रियों को ताकतवर बनाता है। रंग-रूप से रूखापन दूर हो निखार आता है।
मात्रा उचित हो
उचित मात्रा में खाना चाहिए। क्योंकि उचित मात्रा में खाया हुआ भोजन वात, पित्त और कफ किसी प्रकार का विकार पैदा ना करता हुआ, ना केवल आयु को बढ़ाता है अपितु सरलता से पचकर जठराग्नि को भी मंद नहीं करता। अतः उचित मात्रा में ही खाना चाहिए।
पहले खाया भोजन पचने पर ही खाना चाहिए
पहले खाया हुआ भोजन पच जाए तभी पुनः भोजन करना चाहिए। पहले खाए भोजन के न पचने पर उसके रस रूप में न बनने के कारण खाया हुआ भोजन पहले खाए भोजन के साथ मिलकर शीघ्र ही अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न कर देता है । अतः पहले खाए भोजन के पच जाने पर ही भोजन खाना चाहिए।
शक्ति विरोधी पदार्थ नहीं खाएं
हमेशा शक्तिवर्धक पदार्थ ही खाने चाहिए। शक्ति के विरुद्ध तथा ना पचने वाले पदार्थ कभी नहीं खाने चाहिए।
जल्दी-जल्दी न खाएं
कभी भी भोजन जल्दी-जल्दी नहीं खाना चाहिए। क्योकि जल्दी खाने से भोजन में लार नहीं मिल पाती और वो आसानी से पच नहीं पाता और यह भोजन अनेक दोषों से युक्त हो जाता है। अतः भोजन को चबा- चबाकर खाना चाहिए।
बहुत धीरे भी नहीं खाना चाहिए
भोजन को बहुत धीरे धीरे नहीं खाना चाहिए। देर करके खाने वाले को तृप्ति नहीं होती। सारा भोजन ठण्डा हो जाता है और कठिनता से पचता है। बिना बोलते हुए, बिना हँसते हुए एकाग्रचित्त हो शांत भाव से भोजन किया जाना चाहिए ।
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