Unique witness of bankim chandra chatterjee: भारतीय साहित्य में बंकिमचन्द्र चटर्जी का नाम कौन नहीं जानता?.. वे जितने सुप्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं उतने ही प्रसिद्ध न्यायाधीश। न्याय करने में वे ऐसी युक्तियों का प्रयोग करते थे कि गवाह के अभाव में भी न्याय किया जा सके। ऐसे ही एक बार…..
एक गरीब व्यक्ति ने बहुत मेहनत करके थोड़ा धन कमाया। इस धन से उसने अपने बेटे का दाखिला शहर के कॉलेज में करवा दिया। उसका बेटा वहीं छात्रावास में रहता हुआ अध्ययन करने लगा। एक दिन अपने बेटे की बीमारी का समाचार सुनकर वह बहुत व्याकुल हुआ लेकिन धन के अभाव में पैदल ही शहर की ओर चल पड़ा। रास्ते में अन्धेरा होने पर रात्रि विश्राम के लिए वह किसी गृहस्थ के पास आया। दयालु घर के मालिक ने उसे सहारा दिया।
भाग्य की लीला बड़ी ही अनोखी होती है। जो तरह-तरह के खेल रचती है। उसी रात उस गृहस्थ के घर में एक चोर घुस आया। और वह चोर वहाँ रखी एक पेटी को लेकर भाग गया। चोर की पदचाप सुनकर जागा हुआ अतिथि भी चोर के पीछे भागा और उसे पकड़ लिया। लेकिन तभी एक अनोखी घटना घटी। उस चोर ने ही चीखना आरम्भ कर दिया और अतिथि को चोर बताने लगा। गांव के लोग घरों से निकलकर बाहर आये और बेचारे अतिथि को ही चोर मान लिया। वास्तव में गांव का चौकीदार ही चोर था। चौकीदार ने अतिथि को चोर बताकर जेल में डाल दिया।
अगले दिन चौकीदार उस अतिथि को न्यायालय ले गया। जहाँ न्यायाधीश बंकिमचन्द्र चटर्जी ने दोनों का बयान अलग-अलग सुना। सारा वृत्तांत जानकर न्यायाधीश ने अतिथि को निरपराध माना लेकिन साक्ष्य के अभाव में वह निर्णय नही कर सके। उन्होनें उन दोनों को अगले दिन उपस्थित होने का आदेश दिया। अगले दिन उन दोनों ने फिर से अपना-अपना पक्ष रखा। तभी वहाँ एक लड़का आया और न्यायाधीश से बोला की यहाँ से दो कोस दूर किसी ने किसी की हत्या कर दी है। शव वही सड़क के किनारे पड़ा है। आदेश दीजिये उसका क्या करना है। न्यायाधीश ने उस चौकीदार और उस अभियुक्त को शव वहाँ लाने का आदेश दिया।
दोनों बताये गए स्थान पर पहुंचे और वहाँ लकड़ी के तख्ते पर पड़े शव को उठाकर न्यायालय की ओर प्रस्थान किया। शरीर से कमजोर अभियुक्त को लाश उठाने में पीड़ा हो रही थी तो चौकीदार जोर से हँसा और अभियुक्त से कहा कि तुमने मुझे पेटी ले जाने से रोका था। अब अपनी करनी का फल भुगतो।
जैसे-तैसे उन्होनें लाश को लाकर चौराहे पर रखा। न्यायाधीश ने फिर से दोनों को अपना-अपना पक्ष रखने को कहा। उन दोनों ने बोलना शुरू ही किया था कि लाश उठ पडी। और उसने न्यायाधीश को रास्ते का वृत्तांत सुनाया। और जो चौकीदार ने अभियुक्त से रास्ते में कहा था वह बात सुनाई “तुमने मुझे पेटी ले जाने से रोका था। अब अपनी करनी का फल भुगतो”। न्यायाधीश ने उस चौकीदार को कैद करने का आदेश देकर अतिथि को ससम्मान मुक्त कर दिया।
यह श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी के लिए भले ही एक छोटी सी घटना थी लेकिन इससे हमें उनके उत्तम चरित्र व बुद्धिमता का परिचय मिलता है। सच है, बुद्धिमान लोग मुश्किल काम को भी सरलता से खेल-खेल में पूरा कर लेते हैं।
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