Karansar Jaipur Rajasthan:
जयपुर से लगभग 50 कि.मी. दूर हिंगोणिया के निकट स्थित करणसर का दुर्ग देखते ही बनता है । रियासती काल में करणसर पहले खंगारोत कछवाहों के अधीन रहा । फिर खालसा जागीर में रहने के बाद मेवाड़ (उदयपुर) के सिसोदिया राजवंश की राणावत शाखा के अधिकार में रहा । सवाई माधोसिंह (द्वितीय ) ने 1751 ई. में जयपुर की गद्दी पर बैठने के उपरान्त विपत्तिकाल के सहयोगी अपने ननिहाल पक्ष धरियावद के ठाकुर उदयसिंह को मेवाड़ से यहाँ बुलवाकर जागीर एवं तामीज प्रदान की ।
चार विशाल बुर्जों वाला (चौबुजा) करणसर का किला एक लघु भूमि दुर्ग है जो खुले मैदान में समतल भूमि पर बना है । करणसर के भव्य एवं सुदृढ़ किले का निर्माण बहादुरसिंह राणावत ने करवाया था । विशालकाय, चौड़ी व दोहरी प्राचीर से सुरक्षित इस किले का क्षेत्रफल लगभग 11,300 वर्ग मीटर है । इसके परकोटे का घेरा 2500 वर्ग मीटर के आसपास है । किले की प्राचीर इतनी चौड़ी है कि इसके ऊपर एक साथ चार घुड़सवार दौड़कर निकल सकते हैं । किले के भीतर गहरा पाताल तोड़ कुआं, सिलहखाना (शाश्त्रगार) तथा विशाल अन्य भण्डार बने हैं । भीतरी चौक में घोड़ों की पायगें (अश्वशाला) तथा शूतरखाना (उष्ट्रशाला) स्थित हैं, जिसमे लगभग 80 घोड़ों तथा 125 ऊंटों के रहने की व्यवस्था थी । किले के भीतर अनेक भव्य महल बने हैं । माताजी का प्राचीन थान भी स्थित है ।
करणसर के प्रमुख देव मन्दिरों में रघुनाथजी व गोपालजी के मन्दिर उल्लेखनीय हैं । कस्बे के दक्षिण में ‘खग बाबा ‘ का स्थान है जिसकी बहुत मान्यता है । जनश्रुति है की खग बाबा का चबूतरा मध्य युग के किसी प्रसिद्ध बणजारे का स्मारक है जो यहां आया जाया करता था । करणसर प्राचीन समय से ही विभिन्न प्रकार के लघु उद्योगों का केंद्र रहा है । विभिन्न आकृति के विशाल और मजबूत ताले, घोड़ों की जीन, ऊंट की काठी, कुंचियां, बैलों की झूलें तथा जूतियों के उत्पादन के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध रहा है । करणसर के पास रामजीपुरा में निर्मित जनानी और मर्दानी जूतियां देश-विदेश में लोकप्रिय है तथा उनका निर्यात होता है । यहां पर बने विशाल और सुदृढ़ ताले न केवल ढुंढ़ाड़ अंचल में है बल्कि सारे राजपुताना में और बाहर बहुत पसंद किये जाते थे । पुराने किलों, गढ़ों, राजप्रासादों, हवेलियों तथा सम्पन्न लोगों के घरों में करणसर के ताले उपयुक्त माने जाते थे । जयपुर के प्रसिद्ध जयगढ़ के किले में करणसर में निर्मित कुछ विशाल ताले आज भी विध्यमान हैं । बहुत से ताले तो ऎसे हैं जो एक चाबी से खुलते हैं पर दूसरी चाबी से बंद होते हैं । कई तालों में दो चाबियां एक साथ लगती हैं ।
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