Jaitra Singh (1213-1252)
मध्यकालीन मेवाड़ के इतिहास में जैत्रसिंह का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उसके सुयोग्य नेतृत्व में मेवाड़ राज्य की शक्ति का विस्तार हुआ। मेवाड़ के पडोसी राज्य ही नहीं अपितु दिल्ली के तुर्क सुलतान भी मेवाड़ की शक्ति से सशंकित हो उठे और उसकी शक्ति को कुचलने का प्रयास करने लगे। डॉ. ओझा ने लिखा है कि “दिल्ली के गुलाम सुल्तानों के समय में मेवाड़ के राजाओं में सबसे प्रतापी और बलवान राजा जैत्रसिंह ही हुआ, जिसकी वीरता की प्रशंसा विपक्षियों ने भी की है। ”
तेरहवीं सदी के आरम्भ में मेवाड़ के इतिहास में एक नया मोड़ आया। इस समय तक अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो चुका था। और राजस्थान का एक विस्तृत भू-भाग तुर्क सेनाओं द्वारा पदाक्रांत किया जा चुका था। 1213 ई. में जैत्रसिंह मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा और उसने 1252 ई. तक शासन किया। उसने अपनी सैनिक विजयों से न केवल मेवाड़ को सुदृढ़ ही बनाया अपितु उसकी सीमाओं का विस्तार करके उसके राजनैतिक प्रभाव को भी बढ़ाया।
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