Travel to Dhosi Hill Narnaul… Maharshi Chyavan Ashram… Origin of Chyavanprash.
एक ज्वालामुखी जिसने लाखों सालों से अपनी आग को अपने भीतर दबाके रखा। जिसने अपने ही स्वभाव के विपरीत खुदको पूरी तरह शांत कर लिया। और अपने खौलते लावे को धरती के गर्भ से निकलने ही नहीं दिया। प्रश्न यह था कि उसने ऐसा किया क्यों ? और इसका उत्तर यह था-
- उसने अपनी आग को अपने भीतर दबाके रखा क्योंकि उसे विश्व की सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ सभ्यता ‘सनातन धर्म’ को अपनी तलहटी में जन्म देना था।
- उसने खुद को शांत कर लिया क्योंकि उस शान्ति में वेदों की रचना की जानी थी। उसने अपने खौलते लावे को धरती के गर्भ से नहीं निकलने दिया क्योंकि उसे वहां मानव सभ्यता के लिए महान आयुर्वेदिक औषधियां तैयार करनी थीं।
उसने कभी अपनी श्रेष्ठता का बखान नहीं किया लेकिन जिस स्वाभिमान से वह खड़ा है ; वह जानता है कि वह कितना महान है।
अरावली पर्वत श्रंखला के अंतिम छोर पर तथा राजस्थान और हरियाणा की सीमा पर स्थित धोसी पर्वत एक निष्क्रिय ज्वालामुखी है जो हरियाणा के नारनौल शहर के समीप है। ढोसी पर्वत का भारत के इतिहास और संस्कृति में विशेष स्थान है। इसका उल्लेख महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। महाभारत के अनुसार पाण्डव अपने अज्ञातवास के दौरान यहाँ आये थे। यहीं पर वेदों की रचना हुई थी तथा इसी पर्वत पर स्थित है महर्षि च्यवन का आश्रम जहाँ आयुर्वेद की श्रेष्ठतम औषधि च्यवनप्राश की खोज हुई थी। जैसा कि आप जानते हैं कि च्यवनप्राश को अश्विनी कुमारों ने महर्षि च्यवन के लिए बनाया था। इसे खाकर महर्षि च्यवन रोगमुक्त होकर फिर से जवान हो गए थे। आज मैं आपको लेकर चल रहा हूँ महर्षि च्यवन के आश्रम में।
पर्वत पर थोड़ा ऊपर चढ़ते ही आता है शिवकुण्ड। जहाँ भगवान शिव का एक मंदिर तथा हनुमानजी की विशाल प्रतिमा है। महर्षि च्यवन के आश्रम के लिए यहाँ से ऊपर पर्वत के शिखर पर जाना होगा।
इस पर्वत के शिखर पर चढ़कर उसके बाद इसके मुख में उतरना होता है। इसके मुख के बीचोंबीच स्थित है महर्षि च्यवन आश्रम। जहाँ बरगद, नीम आदि वृक्ष, हरी भरी घास, शीतल और मीठे पानी से लबालब चंद्रकूप नामक कुआं, कुण्ड, मन्दिर, मयूरों के पीहू पीहू की मीठी आवाजें, चिड़ियाओं की चहचहाहट, रंभाती गायें और बछड़ों की अठखेलियां आदि इस पावन स्थान को रमणीय बनाते हैं।
महाभारत महाकाव्य के अनुसार इस पहाड़ी ( Dhosi Hill ) की उत्पत्ति त्रेता युग में हुई थी। लगभग 5100 वर्ष पूर्व पांडव भी अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आए थे। विश्व के सबसे पुराने धर्म यानी सनातन धर्म के शुरूआती विकास से लेकर आयुर्वेद की महत्वपूर्ण खोज च्यवनप्राश का नाता धोसी पहाड़ी से है। एक सुप्त ज्वालामुखी की संरचना होते हुए भी भूगर्भशास्त्री इसे ज्वालामुखीय संरचना मानने से इंकार करते हैं। भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि पिछले 2 मिलियन सालों में अरावली पर्वत श्रृंखला में कोई ज्वालामुखी विस्फोट नहीं हुआ, इसलिए इसे ज्वालामुखी संरचना मानना सही नहीं है। पहाड़ी की तलहटी में धुंसरा गांव मौजूद है। इतिहास के जानकारों के अनुसार धुंसरा वैश्य और ब्राह्मण हैं, जो कि च्यवन और भृगु ऋषि के वंशज हैं।