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आज मैं एक ऐसे पौराणिक शहर में हूँ जिससे जुड़ी कथा हर भारतीय के मन मस्तिष्क में है। आज मैं हूँ राजस्थान के करौली जिले के हिण्डौन शहर में, जो पौराणिक काल में ‘हिरण्यकरण वन ‘ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का नाम दैत्यराज हिरण्यकश्यप के नाम पर पड़ा है।
जी हाँ ! यह वही पावन भूमि है जिस पर भक्त प्रह्लाद ने संसार को भक्ति का सही अर्थ समझाया और हिरण्यकश्यप के अभिमान को चुनौती दी। जहाँ भगवान नरसिंह अवतरित हुए और उसी हिरण्यकश्यप का सीना फाड़कर जगत को यह सन्देश दिया कि पाप और अभिमान बड़े से बड़े व्यक्ति का भी नाश कर देता है। वह स्थान जिसके हर्ष और उल्लास को पूरा देश होली के रंगों के रूप में मनाता है।
लेकिन दुर्भाग्य तो देखिये जिस स्थान ने पूरे देश को होली से रंगा आज उसकी प्राचीन विरासतें जर्जर और बदरंग हालत में हैं। यहाँ की ऐतिहासिक इमारतों में लाल सैंड स्टोन और मिट्टी से बना खूबसूरत मटिया महल हो या पुरानी कचहरी का १४ वीं सदी से पूर्व का ऐतिहासिक किला, सभी अब अति दयनीय हालत में है जोकि धीरे धीरे खण्डर में परिवर्तित होते जा रहे हैं। यदि इन उपेक्षित इमारतों को सहेजा जाता तो आज ये शान से इस पावन धरा का गुणगान कर रहे होते।
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प्रह्लाद कुण्ड व भगवान नरसिंह का प्राचीन मन्दिर:
प्रह्लाद की भक्ति के प्रभाव से आज भी हिंडौन स्थित प्रह्लाद कुण्ड पर विलक्षण शान्ति की अनुभूति होती है। यहाँ का दिव्य प्राकृतिक वातावरण विचलित मन को भी स्थिर कर देता है। यह भक्त प्रह्लाद की भक्ति का ही प्रभाव है कि अरावली से चलने वाली हवाओं में इस स्थान पर आज भी भगवान् श्रीहरि के नाम की शीतलता होती है जो तन मन को सुकून से भर देती है।
इसी प्रह्लाद कुण्ड के किनारे पर स्थित है भगवान नरसिंह का प्राचीन मन्दिर। कहते हैं कि हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भगवान् नरसिंह ने इसी स्थान पर प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाया था। लेकिन यह पवित्र स्थान भी उपेक्षा का शिकार हो गया। कुण्ड का घाट देखरेख के अभाव में जर्जर हो चुका है और इस मंदिर में वर्षों से पूजा तक नहीं हुई। ना जाने किस राजनीति के चलते मन्दिर के पुजारी ही मंदिर में ना तो पूजा करते हैं ना ही मन्दिर की देखरेख। यहाँ तक की स्थानीय भक्तों को भी इसमें टूटफूट ठीक करवाने नहीं दिया जाता। भक्त आते हैं और सूने पड़े इस मंदिर में भगवान् नरसिंह की प्रतिमा को प्रणाम कर और इस पावन स्थान के दुर्भाग्य का मंजर देख वापस लौट जाते हैं।
जच्चा की बावड़ी
प्रह्लाद कुण्ड के पास ही एक प्राचीन बावड़ी है जिसे जच्चा की बावड़ी कहा जाता है। इसका निर्माण 14 वीं शताब्दी में करवाया गया था। इससे जुडी एक रोचक घटना है कि जब इसकी खुदाई में जल नहीं निकला तो किसी साधु ने कहा था कि यदि कौई गर्भवती स्त्री इसके अन्दर बच्चे को जन्म दे तो इसमें जल निकल सकता है। साधु के कथनानुसार करने पर इसमें जल निकल आया। स्थानीय लोग कहते है जब एक बार इसका जल सूख गया और इसकी सफाई की गई तो इसके अन्दर बावड़ी के बीचों बीच एक पत्थर के तख्त पर बच्चे को आँचल में लिए लेटी महिला की प्रस्तर प्रतिमा देखी गई। इसी के नाम पर इसे जच्चा की बावड़ी कहा जाने लगा।
नक्कश की देवी – गोमती धाम
हिंडौन शहर के मध्य में स्थित है नक्कश की देवी – गोमती धाम। जिसे हिण्डौन सिटी का हृदय कहा जाता है। यह माता दुर्गा के एक रूप नक्कश की देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि जब संत श्री गोमती दास जी महाराज यहाँ पर आए थे तो उन्हें रात्रि को कैला माता ने स्वप्न में अपने एक पीपल के नीचे दवे होने की सूचना दी। अगले ही दिन वहाँ खुदाई करने पर माता की दो मूर्तियां मिली जिन्हें वहीं स्थापित कर माता का मंदिर बनवाया। मंदिर के पीछे की तरफ गोमती दास जी महाराज का विशालकाय मंदिर उनके शिष्यों द्वारा बनाया गया। जिसमें उनकी समाधि भी स्थित है। यहाँ पर शिव परिवार, पँचमुखी हनुमानजी की प्रतिमा, राम मंदिर, यमराज जी आदि के मंदिर स्थित हैं।
श्रीमहावीरजी का मंदिर
हिण्डौन सिटी से 17 किलोमीटर दूर महावीरजी कस्वे मे श्रीमहावीरजी का मंदिर स्थित है। यह मंदिर जैन धर्म की आस्था का केन्द्र है। इस मन्दिर मे भगवान महावीर कि तांबे से निर्मित प्रतिमा है, जोकी पद्मासन मे विराजित है। इस मंदिर से सम्बन्धित कथा है कि एक ग्वाले कि कामधेंनु गायें प्रतिदिन एक टीले पर जा कर अपना सारा दुध उस टीले पर फैला देती थीं। इस घटना से आश्चर्य चकित होकर ग्वाले व गाँव वालो ने उस टीले कि खुदाई कि तो वहाँ से महावीरजी कि मुर्ति निकली। यहाँ प्रतिवर्ष महावीर जयंती पर पांचदिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।
तिमनगढ़
हिण्डौन से लगभग 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है इतिहास प्रसिद्ध तिमनगढ़किला। जिसे एक नटनी का शाप मिला और फलीभूत भी हुआ। साथ ही जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ इस किले में कहीं पारस मणि छिपी है।