Khetri Town – The Copper City of India | Khetri Rajasthan | Bhopalgarh Khetri | Pannalal Shah Talab | Ramkrishna Mission Khetri | Temples | Travel to Khetri | Visiting Places in Khetri
नमस्ते मित्रों ! अपनी यात्रा के अंतर्गत कुछ समय पूर्व मेरा राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित खेतड़ी नगर जाना हुआ। खेतड़ी का भारत के इतिहास व संस्कृति में विशेष स्थान है। इसी स्थान से ताम्रयुग का प्रादुर्भाव हुआ; तथा यही वह पवित्र स्थान है जहाँ स्वामी विवेकानन्द को ना केवल उनका नाम मिला बल्कि उनके जीवन व पहचान को नई दिशा देने वाली प्रसिद्ध शिकागो यात्रा के लिए सहयोग मिला। यहाँ जिस भवन में स्वामीजी ने निवास किया वह आज भी देखा जा सकता है। इस नगर की इन्हीं विशेषताओं के कारण मैं इस यात्रा के लिए काफी उत्सुक था।
गृहनगर सीकर से रवाना होकर मैं सर्वप्रथम लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर गणेश्वर धाम << (गणेश्वर की महिमा जानने के लिए क्लिक करें) पहुंचा। गणेश्वर धाम की महिमा व प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लेते हुए मैंने अपना प्रथम दिन इसी पावन भूमि पर व्यतीत किया। शाम होने पर यहाँ से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित नीमकाथाना नगर पहुंचकर विश्राम किया। अगले दिन प्रातः यहाँ से खेतड़ी के लिए प्रस्थान किया।
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मोहनलाल गुप्ता ने अपनी पुस्तक “राजस्थान : जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन” में खेतड़ी का परिचय इस प्रकार दिया है –
“शेखावाटी क्षेत्र का सबसे बड़ा ठिकाना खेतड़ी भारत की ताम्र नगरी के नाम से जाना जाता है। झुंझुनू से 67 तथा दिल्ली से 180 किलोमीटर दूर क्षेत्र खेतड़ी नगर, सिंघाना, चिड़ावा, बगड़, नीमकाथाना तथा निजामपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। नीमकाथाना चिड़ावा एवं निजामपुर से यह रेल मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। जब मानव सभ्यता ने ताम्र युग में प्रवेश किया उसी समय से खेतड़ी मानव सभ्यता का प्रमुख स्थल बन गया। उस काल की पुरानी भट्टियां खेतड़ी क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं जिनमें ताम्र अयस्क गलाकर ताम्र-धातु प्राप्त की जाती थी। अरावली के गर्भ में लगभग 75 किलोमीटर लंबी ताम्र पट्टी स्थित है जिसके ऊपरी छोर पर खेतड़ी स्थित है। मौर्य काल के अर्थात 2000 वर्ष पुराने ताम्र निक्षेप खनन के प्रमाण चिन्हित किए गए हैं। मुगलकाल में भी यहां से तांबे का खनन होता रहा। खेतड़ी नरेशों के काल में भी यहां से स्थानीय लोग ताम्र खनन करते रहे अंग्रेजी शासनकाल में ईसवी 1915,1918 व 1923 मैं इस पट्टी के मैदानी क्षेत्र खुडान एवं कोलिहान में भी ताम्र खनन के प्रयास किए गए जो सफल नहीं हुए। आजादी के बाद ईसवी 1954 में जयपुर खनन निगम, भारतीय खनन ब्यूरो तथा भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने अपने-अपने प्रयास किए तथा 1961 में खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स का विकास किया गया। ई.1970 में यहां से अयस्क उत्पादन प्रारंभ हुआ। 5 फरवरी 1976 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स में एशिया का सबसे बड़ा प्रगालक संयत्र (Asia’s largest smelter plant) राष्ट्र को समर्पित किया। इस परिसर में तीन खानें, अनेक मेटालर्जिकल संयंत्र तथा समग्र रूप से विकसित खेतड़ी नगर एवं कोलिहान नगर हैं। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड की पूरे भारत में कुल 6 इकाइयां है इन में से दो खेतड़ी नगर कॉन्पलेक्स खेतड़ी एवं चांदमारी ताम्र परियोजना कोलिहान जिला झुंझुनू में है।”
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भोपालगढ़ | Bhopalgarh Khetri :
लगभग 1 घंटे में मैं खेतड़ी पहुँच गया। यहाँ पहुँचते ही सबसे पहले मैंने यहाँ का Fort ‘भोपालगढ़’ देखने का निश्चय किया। रास्ता पूछकर मैंने अपनी गाड़ी खेतड़ी किले की ओर घुमा दी। किले में ऊपर तक गाड़ी के जाने का पक्का रास्ता है। पहाड़ी घाटी के घुमावदार रास्तों में गाड़ी धीरे-धीरे चलाते हुए मैं कुछ ही देर में किले पर पहुँच गया। अपनी अनूठी गौरवगाथाओं को समेटे यहाँ का किला जर्जर खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। दीवारों और छतों में उगी झाड़ियाँ इस किले की उपेक्षा की कहानी सुनाती है। लेकिन दूर तक पसरे किले और प्राचीन मकानों के खंडहरों को देखना एक रोमांचकारी अनुभव है।
मोहनलाल गुप्ता के अनुसार ”खेतड़ी की स्थापना आज से लगभग 5 शताब्दियों पूर्व खेतसिंह निर्वाण ने की थी। निर्वाणों से यह नगर शेखावतों के पास आया। शार्दूल सिंह के दूसरे पुत्र किशनसिंह को यह क्षेत्र पंचपाना केबंटवारे के समय प्राप्त हुआ। किशन सिंह के कई पुत्र हुए जिनमें से भोपाल सिंह के पास यह क्षेत्र रहा। भोपाल सिंह ने विक्रम संवत 1812 में पहाड़ी की चोटी पर एक गढ़ बनवाया जो भोपालगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। भोपालगढ़ के महलों में कांच का सुंदर काम हुआ है तथा भित्ति चित्रों के माध्यम से नयनाभिराम दृश्य बनाए गए हैं। भोपाल सिंह के बाद अनेक ठाकुर हुए जिनमें राजा फतेहसिंह उल्लेखनीय है।..”
रामकृष्ण मिशन का आश्रम | Ramkrishna Mission Khetri :
भोपालगढ़ किले से उतरकर मेरी अगली मंजिल थी ‘रामकृष्ण मिशन का आश्रम’, जहाँ खेतड़ी यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानन्द ठहरे थे।जिस भवन में स्वामी जी रहे, वह आज भी देखा जा सकता है। स्वामी रामकृष्ण मिशन का विशाल भवन स्वामीजी की स्मृति संजोए हुए है। यह बस स्टैण्ड के समीप है। जब मैं पहुंचा तब वहाँ निर्माणकार्य चल रहा था। द्वार के पास ही तिरपाल से ढकी एक भव्य प्रतिमा स्थित थी। जिसकी आकृति से ही हो गया कि यह संभवतः स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा है। यह विशाल भवन एक महल है जिसे रामकृष्ण मिशन को दे दिया गया है। स्वामी विवेकानंद राजा अजीतसिंह के समय में खेतड़ी आये। यह राजा उदार ह्रदय एवं कवि था। उसने स्वामी जी को विदेश जाने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया। स्वामीजी ने इस राजा के आतिथ्य में रहकर व्याकरण ग्रंथों का अध्ययन किया।
सेठ पन्नालाल शाह तालाब | Pannalal Shah Talab :
भोपालगढ़ दुर्ग के बाद खेतड़ी का दूसरा बड़ा आकर्षण सेठ पन्नालाल शाह द्वारा निर्मित विशाल तालाब है। ईस्वी 1871 में एक लाख रुपये खर्च कर पन्नालाल शाह ने पहाड़ी की तलहटी में इस तालाब का निर्माण करवाया। तालाब के पूर्वी द्वार पर एक शिलालेख भी अंकित है। इस विशाल तालाब के चारों तरफ प्रवेश द्वार, तालाब के जल तक पहुंचने के लिए चारों तरफ सीढ़ियां व पक्के घाट, चौपड़, दो मंजिला बरामदे, मेहराब, द्वार ,छतरियां एवं कलात्मक मूर्तियां तालाब को अद्भुत आभा प्रदान करती हैं। स्वामी विवेकानंद इसी तालाब पर बने एक कमरे में ठहरे थे। जब स्वामी जी विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म की गौरव पताका फहराकर स्वदेश लौटे तो राजा अजीत सिंह ने 12 नवंबर 1897 को इसी तालाब पर उनके राजकीय सम्मान के उत्सव एवं प्रीतिभोज के आयोजन किए। इस तालाब के एक कमरे में मक्खन बाबा नामक संत लंबे समय तक रहे। यह तालाब राजस्थान के गिने चुने कलात्मक तालाबों में से एक है।
इस तालाब पर आकर मैंने विश्राम किया। इस विशाल और आकर्षक तालाब के किनारे बैठकर मेरी पूरे दिन की थकान दूर हो गई। यहाँ बैठकर मैं उस दिन की कल्पना कर रहा था जब स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो से आने के पश्चात् इस स्थान पर अपना भाषण दिया था। भले ही वर्तमान पूर्णतः रिक्त था, परन्तु मैं स्वामीजी के दर्शनार्थ उमड़ी भीड़ और उस दिव्य पुरुष की ओजस्वी वाणी से उत्पन्न ऊर्जा को अनुभव कर पा रहा था। देर शाम तक मैं वहीं बैठा रहा। जब अंधकार घिरने लगा तो भोजन कर समीप ही स्थित वराही देवी धर्मशाला में रात्रि विश्राम किया। प्रातः उठकर वाराही माता के दर्शन कर यात्रा को आगे बढ़ाते हुए मैंने नारनौल स्थित प्रसिद्ध ढोसी पर्वत (च्यवन ऋषि का आश्रम ) की ओर प्रस्थान किया।
खेतड़ी नगर के अन्य दर्शनीय स्थल :
नगर के अन्य दर्शनीय स्थलों में ई.1830 के लगभग बनाई गई पुरोहित जी की हवेली, जो आजादी से पहले जेल के काम में ली जाती थी, 150 वर्ष पुराना राजा अजीतसिंह द्वारा निर्मित झोमू का बेरा, सोभागसिंह द्वारा बनवाया गया सोभागसिंह शोभजी का बेरा, ठाकुर सोभागसिंह द्वारा बनवाया गया लगभग 125 वर्ष पुराना रघुनाथ जी का मंदिर जिसके मण्डप में कांच जड़े गए हैं तथा मंदिर परिसर को भित्ति चित्रों से सजाया गया है, लगभग 150 वर्ष पुराना हरिदास मंदिर जिसमें गोपाल जी की धातु मूर्ति दर्शनीय है, लगभग 130 वर्ष पुराना रामकृष्ण मिशन आश्रम जो फतहसिंह की रानी चूड़ावतजी ने ई. 1859 में दीवान खाने के लिए बनवाया था तथा 1958 में सरदार सिंह द्वारा रामकृष्ण मिशन को दे दिया गया, राजा अजीतसिंह द्वारा ई.1890 में बनाया गया सुख महल, राजा अजीतसिंह द्वारा ई.1888 में यात्रियों के लिए बनवाया गया विश्राम गृह, ई.1920 से 1934 के बीच बनी राजा-रानियों की संगमरमर की कलात्मक छतरियां तथा ई. 1904 में खेतड़ी के प्रबंधक पण्डित शिवनाथ द्वारा निर्मित जय निवास कोठी दर्शनीय हैं।
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खेतड़ी एक और बात के लिए प्रसिद्ध है। वह है यहाँ का प्रसिद्ध आचार। जब भी आप खेतड़ी जाएँ और आपको आचार खाना पसन्द है तो यहाँ से वह खरीदना ना भूलें 🙂
सन्दर्भ – राजस्थान : जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन – मोहनलाल गुप्ता।
अच्छी जानकारी
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